प्राचार्य
अध्यापन, आजीविका का साधन या व्यवसाय मात्र नही, बल्कि यह विद्यार्थियों को एक जिम्मेदार नागरिक एवं समाज के लिए बेहतर भविष्य के रूप में तैयार करने की नैतिक जिम्मेदारी है। अध्यापक की इस विशिष्ट सोच को एक गर्व के रूप में परिकल्पित किया जा सकता है। शिक्षा एवं शिक्षण का एक मुख्य उद्देश्य स्वयं एवं इस विश्व के अन्य सभी प्राणियों के साथ पारस्परिक सौहार्द, सदभाव एवं समन्वय स्थापित करना है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु समस्त शिक्षकवृंद विभिन्न सह पाठ्यगामी क्रियाकलापों के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास हेतु पूर्ण मनोयोग से तत्पर है। हमारी वर्ष 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति निरंतर एवं सतत सम्पूर्ण सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखती है। यह नीति सभी मानदंडों पर खरे उतरते हुए पुनरावृति एवं सभी पहलुओं को नया रूप देने की ओर एक सराहनीय एवं उन्नत ठोस कदम है जिसमे नियमितता एवं सुशासन कुशल रूप से समाविष्ट है। नई शिक्षा नीति के अनुसार इक्कीसवीं सदी की शिक्षा प्रणाली में भारतीय संस्कृति और परंपरा की झलक और नैतिक मूल्यों का समावेश हो। हमारा लक्ष्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करना हो और विद्यार्थियों की रचनात्मक क्षमता के आधार पर न केवल उनकी संज्ञानात्मक क्षमता, उनकी चिंतन क्षमता या समस्या सुलझाने की क्षमता बढ़ाना मात्र नही अपितु उनकी सामाजिक, आदर्शवादी एवं भावनात्मक क्षमताओं को भी जीवन्त करना है।